Sunday, December 29, 2013

गजल-१६० 

गोपी उद्धव सम्बाद पर एक गोट गजल :

सखि हे टान उठल ई केहन 
डाहल मोन सिझल ई केहन 

के पतिया क' सुनत बूझत गप 
माधब प्राण हतल ई केहन 

हिय बेचैन दरस नै भेटल 
ब्रज तजि श्याम रहल ई केहन
 
निष्ठुर साफ़कँ बिसरल सभकेँ 
गाँछल बात नटल ई केहन 

हिय राजीव हकासल सन आ 
आँखिक निन्न उड़ल ई केहन 

२२२१ १२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

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