Tuesday, December 24, 2013

गजल-१५९ 

जखने दुनिया किछो गलत कहतै
तखने आंगुर तुरत सचर उठतै

किछुओ ठानब त' फेर थम्हने रहब
ठानल लोके त' किछु गजब गढ़तै

बोलक टाँसी रहत जँ कम तहने
नेहक पुरबा मधुर सरस बहतै

लागल रहलासँ जोहमे अनुखन
भन्ने देरीसँ धरि अबस लहतै

कतबो राजीव दाबि राखब धरि
झंडा सतकेँ शिखर चढल रहतै 

२२२ २१२ १२२२  
@ राजीव रंजन मिश्र 

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