Friday, December 20, 2013

गजल-१५६ 

पाँचो आंगुर नै समान होइछ कहियो
कहबी डाकक नै पुरान होइछ कहियो


देखल अन्हरिया रातिमे उगल दिनकर बा
दुपहरियामे भेँट चान होइछ कहियो


मोजर सदिखन एकमात्र करनीटाकेँ
अनढन भखला पर कि मान होइछ कहियो


कतबो अरजब नोचि नाचि से कम्मे धरि
विज्ञ लोकक नै सिमान होइछ कहियो


निक मनुखक राजीव एक टा पहिचान जे 
कथमपि छाती नै उतान होइछ कहियो


2222 2121 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

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