Wednesday, December 18, 2013

गजल-१५५ 

गाछीमे आम नै फरए छैक
गामो नै गाम ओ लगए छैक 

चूल्हा चेकी बखाड़ी जाँतक त'
नामे सुनि कानकेँ मलए छैक 

की देखब हाल नबतुरियाकेर
नेन्ना भुटका जाममे मतए छैक 

मीता बहिना त' पुरना गप भेल
अपनेमे लोककेँ बझए छैक 

बोली बिसरल अपन माएकेर
अलगे किछु टोनमे बजए छैक

बजने चढि बढिकँ मोजर भेटत कि
ककरो क्यउ आब नै सहए छैक

बाँचल मिथिला शहरमे राजीव
गामेमे मैथिली झखए छैक
२२२ २१२ २२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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