Wednesday, November 13, 2013

गजल-१४४ 

सहजोरकेँ सहकब छजए छैक
कमजोर अनढनकेँ मरए छैक 


बेछोह दरदो सभटा सभदिनसँ
पछुऐल सभतरहेँ सहए छैक 


अधलाह ओ काजे सदिखन भाइ
जे लोक हरसट्ठे करए छैक 


बुधियार लोकक सभटा ऐ ठाँम
बातेसँ मोसल्लम चलए छैक


भागे भरोसे भेटित सभकेँ  त'
सुतलासँ ककरा किछु लहए छैक 


राजीव मानल टा सनकेँ बात
बपजेठ बढि चढ़ि नित भखए छैक 

२२१ २२२ २२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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