Saturday, November 23, 2013

गजल-१४५ 

एक्कहु टा बात अलबल सोचब त' बेकार थिक
जिनगीमे दोग दागे भागब त' बेकार थिक 

मोजर लोकक सराहलकेर अलगे बुझब
अपने मोने जँ काबिल साजब त' बेकार थिक
 
हाथक रेघाकँ बस रेघे मात्र मानब उचित
भागेंकें रहि भरोसे टीकब त' बेकार थिक 

छल काजक लोक ओ जे पजिया क' सदिखन चलल 
फटकीमे रहिकँ लारब चारब त' बेकार थिक 

फल करमक भोगहे टा राजीव सदिखन पड़त 
अगिलाकें मुँह अनेरे नोचब त' बेकार थिक 

२२२ २१२२ २२१ २२१२ 

@ राजीव रंजन मिश्र

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