Tuesday, November 12, 2013

गजल-१४१ 

लोक ऐठा हँसि हँसि क' सभ बात कहि जाइ छैक
आर किछु हो नै हो थमल नोर बहि जाइ छैक

के सहत सदिखन बात ककरो ठरल आइ आब
मोन नेहक नेहाल पतिया क' सहि जाइ छैक 

किछु रहल नै हाथक अपन साध कहियो त' भाइ
सोच सुलझल बेबाक नै सभकाल लहि जाइ छैक 

देखबामे आओल सभदिनसँ जे सोझसाझ
बुरिबलेले आ सभसँ बेकार रहि जाइ छैक

सत्त मोनक राजीव सहजोर टा नित बचल ग'
झूठ ठामेकेँ ठाम सरकार ढहि जाइ छैक

२१२२ २२१२ २१२ २१२१
@ राजीव रंजन मिश्र

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