Monday, November 11, 2013

गजल-१४० 

आँखि जखने फूजल भोर भेल बूझब 
बान्हि राखब आइर पाइन गेल बूझब 

गप सदति सभदिनका छैक ई सराहल 
काट सभ दिक्कतकेँ तालमेल बूझब 

चारि टा कनहा मुइलोकँ बाद लागत 
लरि क' भिन्ने नित रहनाइ जेल बूझब

एकसर ब्रेहस्पतियो झूठ लोक भेला 
सर समांगक बल अनमोल तेल बूझब 

के ककर ठीका राजीव लेल कहियो 
बोल दू गो नेहक प्राण देल बूझब  

२१२२ २२२१ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्रा 

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