Thursday, October 24, 2013

गजल-१२९ 

घिना क' राखि देलक सभटा सभ 
मनुख ध' बाट जोहक सभटा सभ 

बिता रहल पहर साँझक नेन्ना 
उठाकँ पेग जामक सभटा सभ 

करत कि काज लोकक ढेपा सन 
बनल समाज सेवक सभटा सभ 

जरल धहा क' अपने बुधिगर बनि 
भुखैल मान दानक सभटा सभ 

निचोड़ एक टा छल राजीवक 
पिजैल घाट घाटक सभटा सभ 

१२१ २१२२ २२२ 

राजीव रंजन मिश्र 

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