Friday, October 25, 2013

गजल-१३० 

लोक आइ काल्हि जोरदार भ' रहल अछि 
माल जाल सनक बैबहार क' रहल अछि

मारि धारि लूट पाट जमा क' मचेलक 
धर्मकेर संग बैभचार भ' रहल अछि 

लोकबेद कान काटि हाथ क' धरौलक 
बौक आइ काल्हि कैनहार भ' रहल अछि 

बात की करब समाजबादकँ जखन धरि 
स्वप्नचोर सेठ साहुकार भ' रहल अछि 

राम राम मोन माथ साफकँ हदासल 
दुख रहत मुदा कि होनहार क' रहल अछि 

२१२१ २१२१ २११ १२२ 
राजीव रंजन मिश्र 

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