Sunday, October 20, 2013



गजल-१२७ 

आइ साँझ बड भारी बुझा रहल
फेर मोन बड बेकल बना रहल 


बात बातमे लोकक कहल सुनल
हिय अनेर कारन छड़ पटा रहल 


के सुनत ग' बैथा मोनकेर ई
टाहि मारि दुख बिरहा सुना रहल 


ऐ उदास मोनक हाल के बुझत 
ओलि सभकँ सभ सभतरि सधा रहल 


साँच बाट चलि राजीव खसि पड़ल
मोन मारि बस धधरा मिझा रहल 

२१२१ २२२ १२१२
@ राजीव रंजन मिश्र 

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