Tuesday, October 15, 2013

गजल-१२३ 

चान अहीँ कहू सहकतए कोना
राति पुनम बिना चमकतए कोना

रूप गढल कतेकबो रमनगर हो
फूल पवनकँ बिनु गमकतए कोना


लोक गमल प्रकृति बिसरि बिधानक गप
गाछ फले लुधकि मजरतए कोना


सभ रहत जँ चुप भ' गुण अपन गोए
ज्ञान सुधा बरसि तहन पसरतए कोना 


सोच सदति रहल फराक राजीवक
दीप मतल बुते पजरतए कोना  

2112 1212 1222
@ राजीव रंजन मिश्र 

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