Thursday, October 31, 2013

गजल-१३४ 

अहाँ बिनु साँझ उदास रहल
हदासल मोन निराश रहल


हियाकें हाल पजोर सनक
दबल बड रास भड़ास रहल


बनल छल मोनकँ मीत सुरा
निपत्ता भूख पियास रहल


कहब ककरासँ सुनत त' हँसत
उताहुल लोक पचास रहल 


मरल राजीव खहरि क' बुझू
त' जिबिते आब लहास रहल 


122 211 2112
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, October 30, 2013

गजल-१३३ 

खन खन मोन ई अकुलाएल बहुत छल
भेटल लोक नित भसिआएल बहुत छल 


बाजत सभ अनेरक खटरास करत बस 
पकरल हाथ तैं गरमाएल बहुत छल 


भ्रष्टाचार मेटेबा लेल कहत टा 
नित धरि नोटकें तहिआएल बहुत छल 


के मानत ककर अभिमानक त' भरल सभ
अवसरपर नमरि घिघिआएल बहुत छल 


जैं राजीव सदिखन भगवान सचर बड
बारल लोक तैं सरिआएल बहुत छल   


२२२१ २२२२ ११२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, October 29, 2013

गजल -१३२ 

कानि कानि शोणित नित बहल नोरकेर
यैह थिक पिहानी टा बचल लोककेर 

संग साथ के ककरा रहल बेर काल
चारि शब्द झूठक ढोंग थिक शोककेर 

जीबएत सुधि नै लेत क्यौ भोर साँझ
धरि मरैत माँतर भोज तिलकोरकेर

दान देत बाभनकें भरत पेट जमिकँ
बाल बूढ़ बिलटल सुधि कहाँ टोहकेर

अंग अंग राजीवक शिथिल भेल हारि
लोक वेद रतुका संग छल भोरकेर

२१२ १२२ २१२ २१२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, October 27, 2013


गजल-१३१ 

चहुँ कात एक्कहि रंग देखलहुँ
नै लोक लोकक संग देखलहुँ


चाहे  धनीकक बा गरीबक हो
सुख स्वप्न सभकेँ भंग देखलहुँ


अपने अपनमे लऱि झगऱि मिटल
छूछ्छोक खातिर जंग देखलहुँ


छल राति मजलिसमे ढरल मतल
भोरे तकर नब ढंग देखलहुँ


राजीव सेहन्ते लला रहल
धरि मोन सभकेँ तंग देखलहुँ

221 2221 212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, October 25, 2013

गजल-१३० 

लोक आइ काल्हि जोरदार भ' रहल अछि 
माल जाल सनक बैबहार क' रहल अछि

मारि धारि लूट पाट जमा क' मचेलक 
धर्मकेर संग बैभचार भ' रहल अछि 

लोकबेद कान काटि हाथ क' धरौलक 
बौक आइ काल्हि कैनहार भ' रहल अछि 

बात की करब समाजबादकँ जखन धरि 
स्वप्नचोर सेठ साहुकार भ' रहल अछि 

राम राम मोन माथ साफकँ हदासल 
दुख रहत मुदा कि होनहार क' रहल अछि 

२१२१ २१२१ २११ १२२ 
राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, October 24, 2013

गजल-१२९ 

घिना क' राखि देलक सभटा सभ 
मनुख ध' बाट जोहक सभटा सभ 

बिता रहल पहर साँझक नेन्ना 
उठाकँ पेग जामक सभटा सभ 

करत कि काज लोकक ढेपा सन 
बनल समाज सेवक सभटा सभ 

जरल धहा क' अपने बुधिगर बनि 
भुखैल मान दानक सभटा सभ 

निचोड़ एक टा छल राजीवक 
पिजैल घाट घाटक सभटा सभ 

१२१ २१२२ २२२ 

राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, October 23, 2013


बाल गजल-१२ 
पिछला दू रातिसँ कनिक देरीसँ लौटबाक चलिते बेटी दुनूसँ भेंट नै भेल छल्ह,मोनो लागल छल्ह आ आँखियो फुजि गेल त' छोटकी बेटी विजयलक्ष्मी (गोलू) लेल कहल ई बाल गजल,प्रेषित अछि अहाँ सभक सोंझा:

गोलू रानी सूतल छथि
उनटा मूँहेँ घूमल छथि


बुझना जाइत अछि भरिसक
मोने मोने रूसल छथि

कखनो किछु नै खेतिह ई
छूछ्छे पेटे भूखल छथि

गुऱिया लेने पाँजरमे
अपनेटामे डूबल छथि

पप्पा ऐला सुनिते से
चटदनि कहली ऊठल छथि

राजीवक दुलरी बेटी
बड बुझनुक आ गूथल छथि

2222 222
राजीव रंजन मिश्र

Monday, October 21, 2013

गजल-१२८ 

जरुरतसँ बेसी भेटल मनुखकँ मर्म नै
प्रयोजनसँ बेसी राखब दबाकँ धर्म नै 

कहत बात ठोकल कोना करेज तानि क्यउ 
बनल मान दानक स्तम्भ जिरात कर्म नै

बोध ग्यान हारल मातल मनुख बनल असुर
सदाचार लोकक परिचय बनत ग' चर्म नै

नरम बोल आ लीबल माथ टेक नित बनत 
मुहँक बोल छुछ्छो करगर विचार गर्म नै 

भ' राजीव सभ निरलज मोहरा चलल सधल
लजा गेल दइबो धरि लोक टाकँ शर्म नै

१२२१ २२२२ १२१ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र

Sunday, October 20, 2013



गजल-१२७ 

आइ साँझ बड भारी बुझा रहल
फेर मोन बड बेकल बना रहल 


बात बातमे लोकक कहल सुनल
हिय अनेर कारन छड़ पटा रहल 


के सुनत ग' बैथा मोनकेर ई
टाहि मारि दुख बिरहा सुना रहल 


ऐ उदास मोनक हाल के बुझत 
ओलि सभकँ सभ सभतरि सधा रहल 


साँच बाट चलि राजीव खसि पड़ल
मोन मारि बस धधरा मिझा रहल 

२१२१ २२२ १२१२
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, October 18, 2013


गजल -१२६ 

चान राति सन सजल मुस्कान हुनक मारुक
जान प्राण हति रहल मुस्कान हुनक मारुक

अछि गजलकँ पाँति सन ओ ठोढ़ भरल रसगर
लखि हिया हहरि मरल मुस्कान हुनक मारुक


बात कत कहब ग' उपमा लेल हुनक आँखिक
चन्द्रमा लजा चलल मुस्कान हुनक मारुक


केश कारि मोसि सन फूजल त' बहल झरना
स्याह रातिमे धवल मुस्कान हुनक मारुक


छानि मारि दस दिशा राजीव कहाँ भेटल
छल मरीचिका बनल मुस्कान हुनक मारुक 


२१२१ २१२ २२१  १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, October 17, 2013

गजल-१२४ 

नै राम रहीमक झोक रहय   
नै वेद कुरानक टोक चलय 

किछु आर भने नै होइ मुदा
बस संग ध' लोकक लोक सहय 
 

नै ईद दिवाली भरिकँ मजा
आनंद सहित नित नेह लहय
  
हो राम रहीमक गान सदति
नै नामकँ खातिर जीव मरय 

राजीव सुनब नै लोककँ कहल
किछु लोक त' अतबे खेल करय 

२२१ १२२ २११२ 
@ राजीव रंजन मिश्र  
गजल -१२५  

कहियो रौदी त' कहियो तुफान मारि गेल
किछुओ बाँचल त' धसना धँसान मारि गेल

छोड़ल फज्जैत नै किछु कसाइ बाढि पानि
जुलमी सगरो घड़ारी बथान मारि गेल 

पूजल देवी सरिस मानि लोक धरि सएह 
कहियो कोशी त' कहियो बलान मारि गेल

कखनो राखल कहाँ लोक कनिकबो विचार
मौका फबिते सटासट निशान मारि गेल

खातेमे खेत खरिहानटा बचल भजार
करगर मिहनत अछैतो लबान मारि गेल 

देखल मिथिलाक राजीव हाल बेर काल
चुप्पेचापेसँ सभदिन सियान मारि गेल

२२२२ १२२ १२१ २१२१       
@ राजीव रंजन मिश्र

Tuesday, October 15, 2013

गजल-१२३ 

चान अहीँ कहू सहकतए कोना
राति पुनम बिना चमकतए कोना

रूप गढल कतेकबो रमनगर हो
फूल पवनकँ बिनु गमकतए कोना


लोक गमल प्रकृति बिसरि बिधानक गप
गाछ फले लुधकि मजरतए कोना


सभ रहत जँ चुप भ' गुण अपन गोए
ज्ञान सुधा बरसि तहन पसरतए कोना 


सोच सदति रहल फराक राजीवक
दीप मतल बुते पजरतए कोना  

2112 1212 1222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, October 14, 2013


गजल-१२२ 

विजयादशमिक शुभ मुहूर्तपर समस्त मिथिला-मैथिली,देशभरिक बंधु,बांधवीकें हमर सिनेह आ आदर भरल शुभकामना,भाब भरल दू आखर गजलक रूपमे :

विजयादशमिक हार्दिक शुभकामना अछि 
दोसर नै उपहार धरि सदभावना अछि 

जीतय निकहा हार अधलाहक सदति हो 
चेतन मोनक ई अटल अवधारणा अछि 

सुख सम्पति सौहार्दक नित दीप पजरै 
हो अज्ञानक दूर तम बस चाहना अछि 

भ्रष्टाचारी रावणक टा अंत होमय 
नीकक सभतरि जीत हो प्रस्तावना अछि 

सुधि बुधि लक्ष्मी हो भरल राजीव मिथिला 
गजले टा नै ई हमर उदगारना अछि 
२२२२ २१२२ २१२२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, October 13, 2013


गजल-१२० 

खन खन मोन आकुल भेल अछि,विर्रोसँ लरि-जुइझ रहल भाइ बंधु लेल भगवानसँ आर्तनाद करएत हमर प्रार्थना …. अकुलाएल मोनक दू आखर,गजलकें रूपमे : 

हे नाथ आब कल्याण करू 
नै दोष मूढ़कें आब गनू 

छी हम अबोध अपाटक त' पतित 
धरि जाउ कोन दरबार कहू 

ई आगि पानि जल मेघ चढ़ल 
अधप्राण भेल छी त्रान करू 

किछु नब अबस त' गढ़बा क' रहब 
ली आइ फेर अवतार बरू 

बस एक आस विस्वास अहीँ 
राजीव ठाढ़ कर जोरि प्रभू 

२२१ २१२२ ११२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
१२.१०.२०१३ राति १०.४५ 

गजल-१२

बड दुख लागि रहल सभ लखिकँ
धरि किछु आब कहब की चढिकँ


मानल कोन पतित पतितपावनकँ
सहकल बानि मनुख तन रहिकँ


के मानल ग' ककर सरकार
सभकें मान भुवन सन बढ़िकँ 


बिसरल ज्ञान विवेकक पाठ
पलटल लोक कहल सभ गछिकँ


दोसर चाह कहाँ राजीव
राखथि नाथ सहज गति मतिकँ 


२२२ ११२ २२१
@ राजीव रंजन मिश्र
 


Saturday, October 12, 2013


गजल-११९ 

बड अजगुत ई रीति जगतकें 
देखल चुप रहि ठाढ़ खसलकें 

के राखल आवेग दबा आ 
के मानल अहलाद अपनकें

लोकक बाते बानि गड़ासा
खेलल नित धुरखेल बहसकें 

पावनि टालक टाल उठौलक
डाहल मोने भार रभसकें

जीहक चलते जीव चढ़ल बलि 
रोकत के राजीव चलनकें   
   
२२२ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, October 10, 2013

गजल -११८ 

घुरि फिरि ऐना नै  निहारल करू
रूपक नै किस्सा बघारल करू


बाँचब नै नेहक त' मारल प्रिये
खंजर नै नैनक उतारल करू


सजि गुजि नित दिन दहाड़े अहाँ
अँतरी ने लोकक ससारल करू


बड मारुक ई केश कारी सघन
फन्दा नै एकर पसारल करू


नेहक टा राजीव मारल मतल
बिसरा नै प्रियतम गछारल करू 


222 221 2212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, October 9, 2013

गजल- ११७
  
सभकँ धवल बसन छै राजनितक मैदानमे
जमिकँ मुदा मगन सभ चोरि गबन आराममे

बात करब ग' ककरा संग कखन कोना कहू
सभ त' बझल पड़ल नित चाम सुनर आ जाममे 

क्यउ चलल जँ लोकक नब्ज पकड़ि नेता बनल
वोट पड़ल बनल मंत्री ल' द' पसरल शानमे

मोन रहल कहाँ ककरो त' पढ़ल खाता बही
होश कहाँ क' घूरल खेत नहर खलिहानमे  

कोन हबा चलल देखू त' कनी राजीव ई
लोक घिना घिना नित फाटि रहल दिअमानमे

२११२ १२२ २११२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, October 8, 2013


गजल-११६ 

हम बाटक अनजान पथिक छी
सत नेहक सदिकाल रसिक छी

जे भेटल से मानि चलल सदिखन
नै खोहिस सरकार अधिक छी

नै हाकिम नै लाट गवर्नर धरि
अपना मोनक ख़ास श्रमिक छी 

जे देखल से भाखि चलल सगरो
औ बाबू अहि मे लाज कथिक छी

बुझि राखल राजीव त' जिनगी ई
क्षणभंगुर आ चारि घऱिक छी 
२२२ २२१ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, October 5, 2013


गजल-११५ 
सभ बात मोनक मोनेमे रहि गेल
सभटा अपन धरि सोचल सभ कहि गेल 

कोशिश रहल नै भिजबी आँखिक कोर
धरि नोर रतुका भिनसरमे बहि गेल 

के हाल बूझत बाजब कोना क'
देखल मधुरगर सपना जे ढहि गेल 

हम छी अपाटक मारल नित अपनेकँ
पजिया अनेरो अनको दुख सहि गेल

राजीव देखल निसि बासर ई खेल
बहुतोकँ पासा अनचोके लहि गेल
२२१ २२२२ २२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
जिनगीमे माथा झुकाबए परत 
मरि मरि ई जीवन बिताबए परत 
कतबो कोनाहूँ चलब ग' धरि सखा 
ऋण करजा सभदिन चुकाबए परत 

Thursday, October 3, 2013

गजल-११४  

जिनगी खेल तमाशा टा छैक
आसक संग निराशा टा छैक

के जानल ग' कखन केहन रंग
दैबक हाथ त' पासा टा छैक

राखल नित जँ विवेकक ओहार
मिठगर फेर बताशा टा छैक

नित बस आस अपन हाथे टाक
भेटल कोन नबासा टा छैक

चल राजीव सदति सत पथ टा ध'
किछु खन लेल कुहासा टा छैक 

2221 122 221
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, October 2, 2013


गजल-११३ 
आइ २ अक्टूबर,देशक दू गोट महानतम व्यक्तिक जन्मदिन,क्यौ ककरोसँ कम नै,दुनू गोटेकेँ हमर शत शत नमन,ऐ रचनाक संग(नै जानि हमर ई रचना गजल कहाओत कि नै मुदा गजलकारक हिसाबे हम जे किछु कहबाक से गजलक रुपमे कहब नीक बुझय छी आ गजल विधामे सभ तरहक रचनाक समर्थक छी,बाँकी जे ग्यानी - गुणीजन कहएत) विचारक संग स्नेहाकांक्षी रहब:

सत कखनो नै मरए छै
तितगर धरि बड लगए छै

गांधी शास्त्रीक कहल टा
सभ मौसममे छजए छै

झूठक खेती क' बचल के
जिनगी हिनकर कहए छै

निश्छल करनी बले यौ
दानव बड़का डरए छै

राजीवक माथ त' बापू
शास्त्री लै नित नबए छै

2222 1122

@ राजीव रंजन मिश्र
०२.१०.२०१३ 

Tuesday, October 1, 2013

गजल-११२  

ककरा बुझल छलए जे बात की भेलए 
आँखिक भरब त छलकि सभ बात कहि देतए 

रातुक त' बात बिसरि सभ लगलए काजमे 
ऐ दाव पेंचसँ धरि उद्धार नै हेतए  

फूलक महँक त' रहल काँटक सदति संग टा 
साँपोकँ संग रहब धरि काज नै एलए 

सुधि बुधिसँ कोन बुझल के गप्प नाइन्ह टा 
नेहक मिठास सुखा सभ घाव नित मेटए 

राजीव मति जँ चलल आ सभटा रहित भेटिले 
मनुखक ठिकान कथी पुनि स्वर्ग के टेरए  

२२१२ ११२२ २१२ २१२ 

@ राजीव रंजन मिश्र