Wednesday, August 7, 2013

गजल-९४
  
जन गन ब्याकुल अछि देश कोषमे
टुक टुक ताकल धरि नित भरोसमे

काजे सभतरि बस नोंक झोंक आ
नोचब नाचब मुँह कान रोषमे

बच्चा बच्चा बेहाल भेल धरि
मानत त्रुटि नै क्यौ पाल पोसमे

अपने मोनक सभ राजपाल थिक
जोड़त मुक्ता के राजकोषमे

करनी धरनी भसिऐल चैँकि नै 
सभटा चाहब बस जोश जोशमे  

चढि पाइन तोड़ल आब बान्ह सभ
जागू आबहुँ चलि आउ होशमे

ताकब छोरू राजीव मोटरी
नै भेटत किछु गारल परोसमे

2222 221 212
@ राजीव रंजन मिश्र 

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