Tuesday, July 2, 2013

गजल-८१


गजल-८१ 

लिखबाक कला होइ छैक पढबाक कला होइ छैक
मुश्किलसँ मुदा लोक लग त' गमबाक कला होइ छैक

सभतरि त' चलल खींच तान के आब सुनत आन केर
इतिहास कहत वीर मे त' सहबाक कला होइ छैक 

छी लोक बड़ी छोट मोट ई बात मुदा जानि गेल
अहि ठाम किछु लोक टा क' गढ़बाक कला होइ छैक 

कालक त' रहत मार धार बाँचब जँ रहत बानि नीक
सुधि बुधिसँ सचर लोक केर चलबाक कला होइ छैक 

"राजीव" बुझल यैह बात भेटल त' बहुत रास दाम
नै झुकिकँ मुदा माथ टेक रखबाक कला होई छैक 

२२१ १२२१ २१ २२१ १२२१ २१ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment