Friday, June 28, 2013

गजल:७६




गजल:७६ 

बइसल धारक कातमे
भेटल ककरा पातमे 

रखलक सक्कत डाँर जे
जीतल बाते बातमे 

जागल नित दिन राति जे
घिँउ छल तकरे भातमे 

ताकब अनकर दोष टा
लागल रहि शह मातमे 

राखब नित "राजीव" धरि
लाजक पहरा गातमे 

2222 212
@ राजीव रंजन मिश्र 

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