Monday, June 17, 2013

गजल-७२

माए सम्हारथि घर बाबू बहबथि घाम थिकाह 
संतानक बास्ते गर्जन बर्जन आराम थिकाह 

अपना पर सहि नित सभटा ठंढी रौद बसात 
धी पुत खातिर सदिखन तजने मोनक मान थिकाह 

सक्कत मोने उपरे उपरे धेला रूप कठोर 
कष्टक फेरी परिते दउरल ठाम्हे ठाम थिकाह 

बुझलक सुनलक नै कथनी माए बाबुक जँ संतान 
बुझि राखथु सभ रूपे नित विधना बाम थिकाह

देखल बाबू जानल बाबू बनि "राजीव" समय सँ 
बाबू जीवन मे नै झुट्ठो हल्लुक नाम थिकाह 

    २२२२ २२२२ २२२१ १२१

@ राजीव रंजन मिश्र   

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