Monday, June 3, 2013


गजल-६७ 

नब कहाँ किछु बात भेल 
हारि सभ नित कात भेल 

छल सदति नित नेह भाब 
नित पियरगर गात भेल 

चाह बस जीती हरा क'
जीत टा धरि मात भेल 

आँखि टा उठल त' फेर 
कहि रहल छल घात भेल 

टोकलक "राजीव" रोकि 
तीत अनसोंहात भेल 

२१२२ २१२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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