Sunday, May 26, 2013


गजल- ६४ 

चारि देबालक घेरल टा ने घर कहाबै छै
मोन मेजाजक मारल जे से झर कहाबै छै 

मोन मोताबिक चाहल आ नित रहल मातल
लोक एहनसन आजुक अहिबक फर कहाबै छै 

काज ने देलक ककरो कहियो रहिकँ जे समरथ 
साज पेटारक छारल उस्सर चर कहाबै छै 

बान्ह ने बान्हल सोचल ने छाँटल नबाबी नित 
सैह  यौ बाबू अपने मोने सर कहाबै छै  

नेत "राजीव"क उलझब ने धरि सत सदति भाखब 
लाज लेहाजक मारल निरसल खर कहाबै छै 

२१२२२ २२२२ २१२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र  


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