Sunday, May 26, 2013



भाब वैह जे भाब जतादै 
भाब मोन मे तान जगाबै  


भाब कोन ने रूप सजाबै
भाब मोन आ प्राण जगादै 


भाब व्याकरण मान बढ़ाबै
भाब श्लोक मे बात समादै 


भाब भक्ति थिक ज्ञान कि जानै
भक्ति भाब मिलि त्रानि दियादै 


भाब आँखि बिनु ग्यान सजग धरि
भाब ग्यान बनि दीप जराबै 


भाब मनकँ सभ बात कहै नित
ग्यान बाट चलि धूम मचाबै 


ज्ञान व्याकरण भक्ति नकारल
ज्ञान भाब मे पाँखि लगादै


ज्ञान भक्ति मे भाब कि राखल
ज्ञान कष्ट नित हाँकि बजाबै 


ग्यान राखि बड जीव कि बाँचल
भक्ति भाब लग आबि क' हारै


ज्ञान भक्ति जौँ संग जुटलतौँ
मान नाम आ दाम दियाबै 


भक्ति ज्ञान बिनु खूब निमाहल
ज्ञान भाब बिनु सुन्न कहाबै 


ज्ञान भक्ति मे भेद कहाँ किछु
ज्ञान भक्ति मिलि धाक जमाबै 


ज्ञान दंभ सन बोध दियाबै
भाब छम्य थिक ज्ञान क्षमादै 


ज्ञान भाब सह दैव कृपा छी
भक्ति ज्ञान सह तेज जगाबै


ज्ञान भक्ति बैकुंठक' रूपक
छोड़लकत' इहलोक कहाबै 


भाब चाहि हे दैव गुरू सुनु
भाब ज्ञान मिलि मोन जुराबै 


चाह भक्ति बिनु ज्ञान मुदा नै
मोन ज्ञान बिनु भक्ति नकारै 


२१२१ २२१ १२२ 
@ राजीब रंजन मिश्र  

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