Thursday, May 16, 2013


गजल-५९ 

किछु बात खटकिये जाइ छै
हिय बीच अटकिये जाइ छै 

जिनगीक रमनगर बाट मे
किछु सोच भटकिये जाइ छै

किछु काल झमारै खोभ धरि
सभ कष्ट सटकिये जाइ छै

दियमान निमाहै दैव जौं
सभ आँखि मटकिये जाइ छै 

"राजीव" बुझै छी यैह टा
कमजोर चटकिये जाइ छै 

२२१ १२२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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