Monday, April 1, 2013


गजल-४४

कखनो ककरो कि सभटा चाहल भेटलय
कोठी भारिगरत' बखरा निरसल भेटलय 

गमबइ मौसमत' बुझबा मे आओत यौ
रौदी डाहलत' 
पुरबा शीतल भेटलय

लोकक कहबी कि पातर नेहक बाट बड
गौरब रहलै कि विधना बैसल भेटलय

रहलै भागकत' सगरो घुरि-फिरि देखियौ
नखतो चानकत' खोटल खाटल भेटलय 

सुनलहुँ "राजीव" दैवो छूटल छथि कहाँ
अहिठा हुनकोत' जोखल जाखल भेटलय  

२२२२१ २२२२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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