Tuesday, April 30, 2013


गजल-५२ 

सुख जागि उठल छल दु दिन लेल 
हिय गाबि रहल छल दु दिन लेल

छल चान नखत धरि बनल पैठ
ईजोर भरल छल दु दिन लेल 

सुनि बात हुनक हम छलहुँ गुम्म 
सभ पीर छँटल छल दु दिन लेल 

ने जानि कखन पुनि लखब फेर
जे रूप सजल छल दु दिन लेल
 
"राजीव" बिसरि गेल जगतीक'
सुर ताल जमल छल दु दिन लेल 

 २२१ १२२ १२२१  
© राजीव रंजन मिश्र 

Monday, April 29, 2013

गजल-५१ 

जानयक' सजा भेटत मानयक' सजा भेटत 
सत बात सदति अहिठाँ बाजयक' सजा भेटत
 
पाइनक' बहा देखू घइलोक' हरा बैसब 
टोकबत' घिना चटदनि माँजयक' सजा भेटत
 
शोणितसँ अपन सींचल जे गाछ सदति नेहक  
सरकार सुनब पाछा लादयक' सजा भेटत 

जीवटसँ भरल मोनक घर घरक' पिहानी छै 
झटकारि चलब कतबो धाबयक' सजा भेटत 

"राजीव" बढ़ू आगू लसियैल रहब कत दिन
बिलमबत' बुझू टुकटुक ताकयक' सजा भेटत 
 
२२१ १२२२ २२१ १२२२ 

 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, April 15, 2013


मैथिली नब बर्षक आ जुर शीतलक हार्दिक शुभकामनाक संग:

गजल-50

नब साल सभक शुभ मंगलमय होइ
नित जोश भरल नब छंदक जय होइ

सभ संग चली सहियारल टा डेग
भरपूर नवल मधुगर किसलय होइ

अबधारि अपन राखब हम करनीकँ
बस ध्यान रहय सभ दोषक छय होइ

पाओल मनुख जौँ ठानल जखनेत'
दिन राति चलब ने हारक भय होइ

"राजीव" उठू हे मैथिल नर नारि
अछि चाह सगर बस मिथिलामय होइ

221 122 22221

@ राजीव रंजन मिश्र

गजल-49

झोंक पवन केर मानल ककरा
चालि समय केर छोङल ककरा

ताकि रहल जेठ छोटक मुँह धरि
ग्यान भरल लोक उकटल ककरा

जानि कहाँ पैब जिनगीक कला
टोक झङकबाहि धारल ककरा

पोखि भरल मांगि चांगिक' अपने
लोभ ग्रसल लोक डेबल ककरा

मानि चलल यैह "राजीव" सदति
भाग लिखल छोङि भेटल ककरा

2112  212 222

@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-48

सालक साल बितल जिनगी
साधल चालि चलल जिनगी

खण खण धाबि रहल देखू
छूटल ट्रेन बनल जिनगी

करतब बानिक' अनुरूपे
गीतल गाबि रहल जिनगी

बुरिबक कानि मरल सभदिन
काबिल पाँजि गहल जिनगी

"राजीव"कत' सनक अलगे
मिठगर भास गजल जिनगी

2221 1222

@ राजीव रंजन मिश्र

Monday, April 8, 2013


गजल-४७ 

याद हुनक रहि रहि सताओल हमरा
चैन सदति सभदिन छकाओल हमरा

बाट जिनक सदिखन सजाओल फूले
चालि चलन सबहक झमाओल हमरा 

चान नखत कहियो कि छल चाह भेटय
डेग परल जहिँ तहिँ हराओल हमरा

भोर सुतल कहुना मुदा राति सगरत'
आँखि भरल टकटक तकाओल हमरा

लोक कहै "राजीव" अनढनकँ सहकल
सोच हमर खहरल नचाओल हमरा

2112 22 122122

@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, April 7, 2013


एक टा आर धिया बलि चढली,जैतुकक आगि मे। हम एक टा गप सखा मंडलीस' कहय चाहब आइ,जे हमर उद्देश्य परस्थिति बा नीक बेजैक फैदा उठैब ने परंच हम जे क' सकैत छी से करबाक अछि।तहन हाँ रचनाक माध्यमस' किएकत' हमरा बूते ई बेसी नीक जकाँ हैत से हमर अपन विस्वास अछि ....बाँकी अपने लोकनिक हाथ मे। हमर विनम्र अनुरोध जे कटुत' लागत धरि मंसा बुझबाक प्रयास करब आ जौं हमर बात में किछुओ नीक लागैत' हम सभ किछु नब करी ...धन्यवाद सभगोटेक'...जयमिथिला ...जय  मैथिली ..जय भारत।। 

गजल-४६ 

सभ गाबैत रहब आ बजाबैत रहब 
मिथिला मैथिल के धरि घिनाबैत रहब 

चरचा छैक घरे-घर जनकललीक' मुदा 
आंगन घरकँ धिया नित जराबैत रहब 

आनब राज अपन आ महाराज बनब 
किरिया कैल अपन कत सधाबैत रहब 

औ सरकार कमी की बिधाताक' कहब 
सभटा दोष अपन धरि नुकाबैत रहब 

सगरो हाक लगा येह "राजीव" कहत
मानब नेत' अहाँ हम मनाबैत रहब  

 २२२१ १२२ १२२१ १२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, April 6, 2013


गजल-४५ 

सभ बात छटल ठीके होइ छै
कलिकाल भसल ठीके होइ छै

बुधियार बुझल चेतल सम्हरल
बुरिलेल मरल ठीके होइ छै

असलीत' बुझय अपनेट़ाक' सभ
अनकरत' नकल ठीके होइ छै 

उधियैब जरब कखनो ने उचित
सत बात गरल ठीके होइ छै 

जौँ भान रहत निक बेजैक टा
तौँ ग्यान सबल ठीके होइ छै

पग छानि गहब मानब सतक' नित
अवधारि चलल ठीके होइ छै 

"राजीव" सदति मानू टा सखा
खहियारि कहल ठीके होइ छै

221 1222 212

@ राजीव रंजन मिश्र

Thursday, April 4, 2013

     मिथिला-मैथिलिक राजनीति 

धोती छोङल चानन लेपल,खुट्टा गारल सभ ठामे ठाम
नगरे नगरे ढोल पिटल धरि घुरि ताकल ने अपना गाम
माय बापसँ सरोकार ने माटि पानिकँ सुआद ने जानल
मुदा मंच पर जमाकँ आसन सभ बनय छैथ बगुला राम

पंचायती ठोकल घर घर में,अपना पर ने सक किनको 
लोक सगरत' खुब गुदानल,घर आंगन ने देलक  दाम
लला रहल सभ देखिक' किरिया,झूका रहल नित माथा
मुदा नकारल बेटा-पोता,बिसरि  रहल सभ पाग खराम 

शहर बजार मे मिथिला मैथिली,गाम घर धरि मौलायल 
मानल अहिठा नात-दियादी,ओहिठा टोले धरि बुझै गाम 
रहल जथा ने खेत घरारी मुदा शान कि सहजे संग छोड़त 
सोचि नियारल गहि पजियाओल मिथिला-मैथिलिक नाम 

देखल बंगाली,सीखल पंजाबी आ मड़वारीक टाका गानब
पौलक सभटा निकहा सबहक,सोचलक लौटी अपना धाम
मुदा हाय रे हाय की देखल,लागल सभ गदहपचीसी टा मे 
किया गुदानैथ ई सभ किनको,बुधि छैन्ह अपने घुट्ठी चाम 

सभ अर्थे जे जगती देखल आ जीतल देस कोष मे ज्ञान बले 
तिनका सभकँ मिलि बोकियाबैथ,चाही टा बस अर्थक खाम 
छोरू यौ बाबू जुनि आर घिनाबू,राजनीति देखल आ बुझल 
अपने अपने जौं घर गाम सम्हारब तैय्यो भेटत मान-सुनाम 

@ राजीव रंजन मिश्र 


Monday, April 1, 2013


गजल-४४

कखनो ककरो कि सभटा चाहल भेटलय
कोठी भारिगरत' बखरा निरसल भेटलय 

गमबइ मौसमत' बुझबा मे आओत यौ
रौदी डाहलत' 
पुरबा शीतल भेटलय

लोकक कहबी कि पातर नेहक बाट बड
गौरब रहलै कि विधना बैसल भेटलय

रहलै भागकत' सगरो घुरि-फिरि देखियौ
नखतो चानकत' खोटल खाटल भेटलय 

सुनलहुँ "राजीव" दैवो छूटल छथि कहाँ
अहिठा हुनकोत' जोखल जाखल भेटलय  

२२२२१ २२२२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र