Friday, March 29, 2013


गजल-४४ 

फगुआ बरसल बड मिथिला मे
रभसल बहकल चित मिथिला मे 

रघुवर खेलथि होरी अहिठाँ
सीता बिहुँसथि नित मिथिला मे
 
पावन माटिक महिमहिमंडन छै
अन-धन लछमी सभ मिथिला मे 

लख चौरासी जोनिक मेला 
जनमी धरि हम बस मिथिला मे 

"राजीव"क मानब सदिखन धरि 
बुधि बल बढबी मिल मिथिला मे 

२२२२ २२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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