Friday, February 15, 2013

जाड़क बाबैत

भोरे सुरूज देर करैथ
आ दिन जल्दीसँ झाँपैत
नेनासँ बूढ पुरानक देखू
हाथ पायर अछि काँपैत
सुतल जवानी तानि चदरिया
ई थिक जाड़क बाबैत !

छायल मुहँ पर हरियरी
गाछ बिरीछ सब जागल
लहलही देखू जगती कए
कोने कोण रंग पसारल
मोन मगन अछि गाबैत
ई थिक जाड़क बाबैत !

क्यौ काँपि रहल जाङे थर थर
माघ पूस केर कनकन्नी छैक
कैलक सभटा ई अधमौगैत
बुढ बिप्पनकँ गर्दन्नी छैक
सदिखन जीनगीकँ सिहराबैत
ई थिक जाड़क बाबैत !

रोपनी छँटनी कैल अखारक
जौं भेटल समुचित अगहनमे
पुलकित मोने चौक चौबटिया
रभसि रहल सब जीवनमे
शीत प्रकृतक रूप सजाबैत
ई थिक जाड़क बाबैत !

सभ रूपे धरनीकँ गमकाबय
शीतक ई मदमातल काल
देह मोन जीवन दमकाबय
माहि मंडित भेल तरुअर ताल
अभरन भरिगर अछि पहिराबैत
ई थिक जाड़क बाबैत !

राजीव रंजन मिश्र 

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