Friday, February 15, 2013


अक्सर दिखते हैं
सङक के किनारे
फुटपाथ पर
बढी हुयी दाढी व
मैले कुचेलै वस्त्रों मे
कई विपन्न इन्सान
प्लास्टिक के थैली मे
किसी रेस्तरां के बाहर
फेकें गये खाद्यान्नों के
जूठन को समेटे
पेट भरने को खाते
बङे ही निर्विकार भाव से
अपना भूख मिटाते!

घर घर में है देखा
बच्चों से बूढें तक को
जिह्वा के चाटुकारिता
के वज़ह से कुछ खाते
व अधिक व्यंजनों को
नाले में बेदर्दी से गिराते
बिना एक पल ठहर कर
सोचे हुए कभी भी
कि दुनियां में बेहिसाब
किस्मत के मारे लोग
तरसते हैं ,
मुठ्ठी भर दाने को
अपना भूख मिटाने को।

हम यह मानें कि पेट की
भूख बढाने या दबाने की
चीज़ नहीं बल्कि,
मिटाने की चीज़ है
क्यों ना हम सब
दाने दाने को बचाएं
तन व मन से भरे
लोगों को ठूस-ठूस कर
खिलाने के बजाय
उन बेबस भूखे
गरीबों को खिलायें
जो कि हैं मोहताज़
उनकी क्षुधा मिटायें। 

राजीव रंजन मिश्र  

No comments:

Post a Comment