Wednesday, January 23, 2013


अब मैं यह कैसे बतलाऊँ
किसको मैं कैसे समझाऊँ
हृदय यंत्र जो झंकृत कर दे
स्वर बीणा वह कैसे लाऊँ
अब मैं.....................
राग द्वेष का लेश नहीं हो
आपस में कोई क्लेष नही हो
सत्य मात्र का हो अभिनन्दन
वह परिवेश कहाँ से लाऊँ
अब मैं ..................
छलक रहे हैं भाव कलश
फरक रहे हैं सब नस नस
शोणित का अब मान रहे बस
वह सम्मान मैं कैसे पाऊँ
अब मैं...........
समृद्ध धरा हो हर लिहाज से
आलोकित नित नव चिराग से
मानवता चहुँ ओर प्रखर हो
वह प्रकाश किस विधि फैलाऊँ
अब मैं.........
मानस भावों का हो अनुमोदन
सहज भाव समुचित अन्वेषण
निष्कपट रूप निश्छल मन से
यह गीत सदा मैं गाता जाऊँ 
अब मैं.........
है चाह यही बस परमप्रभू से
बैमनस्य हो दूर मनुज से
प्रेम भाव निखरे कण कण में
परिमार्जित वह संसार  बनाऊँ
अब मैं......................
राजीव रंजन मिश्र 

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