Monday, January 7, 2013


गजल-24
मोन हम्मर कहैत अछि कहबे करत
हम सभ मिलि चली बाट भेटबे करत
काज बड्ड अछि कठिन ई सतारब मुदा
ठानि लेलक मनुखजँ से करबे करत
भोर होइ छैक सदति राति गेलाक बाद
धीर धएकँ रहब सूर्ज उगबे करत
बीति जायत कठिन काल मुश्किलकँ सभ
दिन पलटत फेरो भाग जगबे करत
जीनगी चारि दिन केर छी भेटल उधार
काज ओतबे  करी जे नित छजबे करत
मोन मन्दिरमँ सदिखण राखब उछास
सत सभदिन अनेरो चमकबे करत
आउ “ राजीव" सजाबी सब मिथिलाकँ खुब
नेह पानिक सिंचल गाछ फरबे करत
(सरल वर्णिक बहर,वर्ण-16)
राजीव रंजन मिश्र 

मन मेरा ये कहता है कहता रहेगा 
साथ सब मिल चलें राह मिलकर रहेगा 
काम बेहद कठिन है ये करना मगर 
ठान ले गर मनुज तो निश्चित करेगा 
सुबह होती है रात बीत जाने के बाद 
धैर्य रखें सदा सूर्य निश्चित उगेगा 
बीत जाएगी मुश्किल की सारी घड़ी 
दिन पलटेंगे फिर से भाग्य अपना जगेगा 
जिंदगी चार दिन की मिली है उधारी 
काम ऐसा करें जो सब दिन निभेगा 
मनमंदिर में उत्साह बनाये रखना हमेशा 
सत्य बेवजह हर हमेशा चमकता रहेगा 
आओ "राजीव" सजाएँ हम मिथिला को खूब 
नेह जल से सींचा पेड़ निस्संदेह फुले फलेगा 

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