Monday, January 7, 2013

बादलों के झूरमुठों में एक परी सी वो दिखी 
आसमाँ के हर परत में एक कड़ी सी वो दिखी 

होंठ उसके ज्यूँ कमल के पंखुरी खिलते हुए 
नैन चंचल बैन निश्छल सहचरी सी वो दिखी 

जब कभी वो हंस परे तो फूल सारे खिल उठे 
शरमों हया से मुस्कुराती फुलझड़ी सी वो दिखी

उस अदा के क्या कहूँ जो बस सितम करते रहे 
दिल तड़पता आहें भरता मद भरी सी वो दिखी 

हमने ठुकरायी थी दुनियाँ उस बेवफा के प्यार में
मुझको करके बेमुरौव्वत चुप खड़ी सी वो दिखी 

या खुदा वो इस कदर क्यूँ बेरहम दिल हो गये 
मुझको "राजीव" यूँ मिटाकर खुद डरी सी वो दिखी  

राजीव रंजन मिश्र 

मुझको "राजीव" यूँ मिटाकर खुद डरी सी वो दिखी
 मुझको "राजीव"यूँ मिटाकर अधमरी सी वो दिखी 

4 comments:

  1. मंगलवार 11/06/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद !!

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  2. बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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  3. बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......

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  4. हार्दिक आभार आप सभी विज्ञ गुणीजनो का!!

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