Wednesday, January 23, 2013

"जाड़क बाबैत"

भोरे सुरूज देर करैथ
आ दिन जल्दीसँ झाँपैत
नेनासँ बूढ पुरानक देखू
हाथ पायर अछि काँपैत
सूतल जवानी तानि चदरिया
ई थिक जाङक बाबैत !


छायल मुहँ पर हरियरी
गाछ बिरीछ सब जागल
लहलही देखू जगती कए
कोने कोण रंग पसारल
मोन मगन अछि गाबैत
ई थिक जाङक बाबैत !


क्यौ काँपि रहल जाङे थर थर
माघ पूस केर कनकन्नी छैक
कैलक सभटा ई अधमौगैत
बुढ बिप्पनकँ गर्दन्नी छैक
सदिखन जीनगीकँ सिहराबैत
ई थिक जाङक बाबैत !


रोपनी छँटनी कैल अखारक
जौं भेटल समुचित अगहन मे
पुलकित मोने चौक चौबटिया
रभसि रहल सब जीवन में
शीत प्रकृतक रूप सजाबैत
ई थिक जाङक बाबैत !


सभ रूपे धरनीकँ गमकाबय
शीतक ई मदमातल काल
देह मोन जीवन दमकाबय
माहि मंडित भेल तरुअर ताल
अभरन भरिगर अछि पहिराबैत
ई थिक जाड़क बाबैत !


राजीव रंजन मिश्र 

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