Wednesday, January 23, 2013


झोंका मस्त पवन का उनकी हर प्यारी बातें हैं
घनघोर घटा छा जाये जब केश सघन लहराते हैं

दिल को पागल कर जाती चंचल चितवन उन आँखों की
हर एक अदा उस जालिम की बस चाक जिगर कर जातें है

अहसास ही उनके होने का,काफी है बहलाने को खुद को
हम उनके खयालों में खोकर ख्वाबों के शहर हो आते हैं

फुर्सत जो मिली तो देखेंगे क्या वक्त को है मंजूर भला
फिलहाल खुदा जो बख्शा है आओ लुत्फ़ उठाते है

झूकी निगाहें खामोश जुबां कई बात बयां कर दे अक्सर
"राजीव" फ़रिश्ते बातों को एक मोड़ नया दे जातें हैं

राजीव रंजन मिश्र 


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