Sunday, December 9, 2012


गजल २० 
चारि दिनक जिनगी ने  कनबाक लेल छैक
एक्कहूँ क्षण बेकार ने करबाक लेल छैक 

दैव छथि पठौने मनुक्खक योनि जखनहिं
चालि प्रकृति बिगारि ने चलबाक लेल छैक 

संसार थिक समस्या सए भरल सभरुपे  
बुधि विवेक निदान निकालबाक लेल छैक

ज्ञान कलश नुका कए राखब उचित नहिं 
मुहँ त उचित विहित बजबाक लेल छैक 

नेन्नहिं सए ने कखनो सीख राखल सभटा 
नेन्ना त पैघक कोराम' पलबाक लेल छैक 

पैघ भेनाईये टा ने दम्भक बात छी कखनो 
पैघत्वत' सदिखन निमाह्बाक लेल छैक 

तोचाहिंची आ नोंकझोंक कैल गेल बहुतहिं 
प्रयोजन नब समाज गढ़बाक लेल छैक  

"राजीव" बड्ड कैल गेल राजनीति सभगोटे 
पूर्वाग्रह छोरिकँ आगू बढबाक लेल छैक

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१७)
राजीव रंजन मिश्र 

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