Tuesday, December 18, 2012


पिछले कुछ दिनो से अजीबो गरीब हालात का सामना करना पर रहा है,कल हठात् मेरे दिल मे यह बात आयी कि हम अक्सर हालात की दुहाई देते रहते हैं मगर हालात/परिस्थिति हम मनुष्यों के बारे में क्या सोचती होगी,चन्द पंक्तियाँ खुद हालात के शब्दों में ....मेरे ज्ञान के हिसाब से !
परिस्थिति जो
स्वंय बनाये गये
हो के लाचार
उसी में फँसकर
कोसते रहे मुझे !
जुबान पर
सुनाई दे सबके
आदर्श बातें
पर व्यवहार में
सब के सब वही!
हाँ,मिले चन्द
वीर गाहे बेगाहे
अपने बूते
सम्हाल कर मुझे
निश्चिंत कर दिया!
वो फूले फले
हर दौर में चले
बाधाएँ हारी
राह छोङ उनके
राहु केतु भी भागे!
ओ बुजदिलों!
सुन लो बात मेरी
सामना करो
डँट कर मुझसे
मुझे मौका न देना!
क्योंकि दोस्त
मैं हूँ तुम्हारे कर्मों
का प्रतिफल
प्रारब्ध मात्र तेरा
हूँ मै निर्विकार!
राजीव रंजन मिश्र 

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