Sunday, December 9, 2012


गजल २५  
की लए क ऐल रही की लए क जैब यौ
कनी सोची कोन छवि अपन बनैब यौ 

जिनगी छी चारि दिनक भेटल उधार
कर्म  एहन करी जे नाम उजियैब यौ

ऐल रही नांगट आ नांगटे जैब सभ
जोरि तोरि कतेक सूदि आरो बढैब यौ

सत्त छी यैह टा जाय परत छोरि कए
घर द्वारि नेह नात सभ बिसरैब यौ

आँखि खुजि जैत छै उठैत लहास देखि 
मुदा फेर हम अहाँ सभ  अन्ठियैब यौ

जीवैत होश नै रहै ने ध्यान की करै छी 
मृत्यु  नाम सुनिते मोन कहै परैब यौ

"राजीव" आबहुं बंद करी आँखि फेरब
सभ दिन कि एक्कहि गैले गीत गैब यौ 
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१५)
राजीव रंजन मिश्र 

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