Sunday, December 9, 2012


गजल २७ 

आउ हमहूँ  नब गीत गाबी 
संग चलि कए डेग बढाबी 

जग बढ़ल बड्ड दूर तक
हम छूटब नहिं संग धाबी 

लोक पहुँचल चंद्रमा पर 
झगरे अहाँ हम फरियाबी 

मोनसँ जौं हम ठानि राखब 
कोनो रूपे ने अछि कम दाबी 

बड्ड कैल हम कुकूर चालि
मिथिलाक' मिलि सभ सजाबी

सभ अछैते रहल बारल 
बूझी सुनि सहेटि ज्ञान लाबी 

छोड़ी आब मोनक पूर्वाग्रह
ई मिथिला महोत्सव मनाबी 

"राजीव" गोहरै सभ गोटकँ
चलू मिलिकँ अधिकार पाबी 

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-११)
राजीव रंजन मिश्र       

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