Saturday, November 17, 2012


          गजल (४)

हम अहाँ के चाहय छी एना यै
मरैत जीव प्राण चाहै जेना यै

संग चाही अहाँक टा ओनाहिते

चाँन चकोरी के संगति जेना यै


रूसि अहाँ रहय छी जे कहियो

लागै प्राण छुटि जेतय जेना यै

मानल प्रेम जतबब ने जानी
फारि छाती देखू चाहय केना यै  

जिन्नगी छी अहाँ संग चह्कल
जनि सुग्गा संग रहय मेना यै   


कहै राजीव विधना सँ एतबा 
जोड़ी बनल बस रहै ऐना  यै


(सरल वर्णिक वर्ण-१२)
राजीव रंजन मिश्र

No comments:

Post a Comment