Saturday, November 17, 2012


    गजल (१)

आइ हमरा निन्न भैए ने रहल अछि
देखि सबके चालि नोर जे बहल अछि 

सब हंसय छैक ठठा क लोकक नामे
दोष अप्पन क्यउ देखि नै रहल अछि 

कही ककरा मोन केर  इ दरद हम 
बनि बकड़ा सब दुःख इ सहल अछि 

सुति रहल सब भए गेलय अन्हार
राति जागब हम करै के टहल अछि 

बाट तकिते दिन भरि बीतल हमर 
राति बितय कोना सौंसे जे पड़ल अछि 

प्राण रहिते मुदा हम नै हारब हिया
छाती हमरो बड्ड जीवट भरल अछि 



राजीव रंजन मिश्र 
१९.०७.२०१२

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