Saturday, November 17, 2012

अपन सोच सँ समाज के नै जगा पैलहूँ त की  कैलहूँ!
अपन कर्म सँ समाज के नै उठा पैलहूँ  की कैलहूँ!!
घटना पर तर्क-कुतर्क त सब करैत छैक आ करतय!
धधरा बनि इन्कलाब नै जगा पैलहूँ त कि कैलहूँ!!

अपन लगन सँ,दिक्कत नै मोडि पैलहूँ  की कैलहूँ!
अपन वचन सँ,विरोध नै तोडि पैलहूँ  की कैलहूँ!!
आगि में पानि  त सब ढारबे करैत  छैक मुदा!
जौं पानि में आगि नै लगा पैलहूँ  कि कैलहूँ!!

ई नै बुझु जे दिक्कत कहियो कम छल हेतय! 
वरंच कनी सोचु जे ओ केहन वीर छल  हेतय! 
पारिस्थितिक वश में भ नै जे फ़र्ज़ सँ हटल हेतय! 
दुनिया में जकर सोच चट्टान सन अटल हेतय!! 

भीड़ में रहितो जे सदिखन भीड़ स विरल  हेतय! 
बिर्रो-तूफां सँ डरा ने जे कखनो थम्हल  हेतय! 
युग कोनो भी  कियाक नै रहल होय सरकार!
वैह वीर सभ दिनका शाहंशाह रहल हेतय !!

---राजीव रंजन मिश्र 
२७.०५.२०१२

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