Saturday, November 17, 2012


हर डेग पर खहरैत आस-भरोस
दिनानुदिन क्षीण परईत आवाज                               
कि याह नहि थिक आजुक 
हमरा लोकनिक बिखड़ल समाज?

हरेक मुद्दा पर ईच्छाशक्तिक कमी 
आ बात-बात पर कुतर्कक स्वभाव  
बस अप्पन घर टा रहय बाँचल                         
कि नहि थिक मनुक्खताक अभाव ?

अपनहि टा लेल जिबय के सोच 
दूर-दूर तक हरायल जन-आस्था
किछु नाम मात्रक  क्रिया-कलाप                   
कि याह नहि थिक आजुक संस्था?

जे मिलबैत रहैत सदिखन हाँ में हाँ 
ओहि दस गोट संग रहबाक प्रवृति 
जन-उत्थानक नाम पर नोच-खसोट 
कि नहि बनि गेल अछि अप्पन वृति?

हाँ यौ हाँ! छिरिया गेल अछि अपन समाज
कत्तहूँ स कोनो नै उठि रहल अछि आवाज
जौ उठति अछि त दबा देल जाइत अछि  
चारि गोटक समूह संस्था कहाइत अछि

समयक मांग थिक जे संगठित भ धाबी 
छोड़ि भभटपन जनमानस के संग लाबी 
दैब जौ पठौला मनुक्ख बना धरती पर
त परिभाषित मनुक्खक समाज बनाबी


राजीव रंजन मिश्र 
०६/०७/२०१२

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