Sunday, November 25, 2012


यह जिवन तो है बस एक सफ़र 
सुख दुःख की राहों पर चलकर
निज मतवाली शान में है रहती 
निर्झर झरने सी निश्छल बहती 

हर कदम पे होंगी बाधायें कठिन
पर हम उनसे ना भागे घबरा कर
आशाओं का दामन थाम सतत ही 
चलते जायें बस जिवन के पथ पर 

धरा पर आये हैं हम मेहमान स्वरुप  
दिखता भावी जिवन  एक अंध कूप
है अनवरत रूप से चलती रहती यह
कर्मो के मुताबिक ढलती रहती यह  

हम मान चलें चलना ही जीवन है 
रुक जाना इस पथ पर बेमानी है 
कर्तव्य मार्ग पर डट कर रहे खड़ा 
स्वाधीन वीर की यही निशानी है 

गर अडिग रहें हम अपने सोचों पर
तो जिवन की बगिया खिल जाएगी
बिना रुके नित चलके इस यात्रा की 
निर्धारित मंजिल भी मिल जाएगी

राजीव रंजन मिश्र 

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