Saturday, November 17, 2012


         गजल (२)

हम घाट घाट के जानि रहल 
हम राह बाट  ठेकानि रहल  

सबतरि लोक बेहाल छलय
बस सब के सब कानि रहल  

लोक प्रकृति संग खेल करय 
झरकत से नहि जानि रहल 


डाढल अछि लोक समाज ऐना 
दिन राति कोनाहूँ गानि रहल  

ऐंठल जून्नी सन बात करय 
ककरो कहल नै मानि  रहल 

संज्ञान लियह सब मिलि मीता
ज्ञानी सब याह  हकानि रहल 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-  १२)

राजीव रंजन मिश्र 
१९.०७.२०१२

No comments:

Post a Comment