Saturday, November 17, 2012


                    गजल-८ 
देखिते हम अहाँ के सोचल कि बात भ गेलय
किया मोन हमर बौरहबा जे कात भ गेलय

हम ने बूझि सकल कतबो चाहि आइय्यो धरि
किया जे सगरो मेघ बिना बरसात भ गेलय 

चाहल एक बेर नखत चमकय हमरो त' 
सगरो घर आँगन बैरीक जिरात भ गेलय

जौ जीवनक खेल चलैत रहलय अहिना त'
बुझबय कैल धैल सभ अन्सोंहात भ गेलय 

'राजीव' आब ने रहल भलमन्साहतक मोल 
लागय लोक जेना अरिकोचक पात भ गेलय 

( सरल वार्णिक बहर वर्ण-१८ )
राजीव रंजन मिश्र  

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