Sunday, November 25, 2012


हिंदी गजल ३  

है मुश्किलों का दौर हालात भी कुछ अच्छी नही
चाहतों की क्या कहें बात भी कुछ अच्छी नही

बागबाँ भी क्या करे मौसम के बदले मिजाज हैं 
सुखा परा समूचा जज्बात भी कुछ अच्छी नही

दिल को सम्हाल रखा आँखों से निकल परी है
बेबाक अश्कों के खयालात भी कुछ अच्छी नही

चंद सिक्कों के बिनिमय में इंसान बिक रहा है
व्यवसायियों के वसुलात भी कुछ अच्छी नही

इस वतन में भी कभी इंसान थे खुशहाल 
दौराने गर्दिशें दिन रात भी कुछ अच्छी नही

"राजीव" बदल चूका है इस मूल्क में विवाह 
दूल्हा तो खैर छोड़ो बारात भी कुछ अच्छी नही


राजीव रंजन मिश्र 
२८.०८.२०१२

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