Saturday, November 17, 2012


हम एहन छी,हम ओहैन छी
हम घरक बिचला  धरैन छी
हम अतेक दिन सँ लागल छी
मिथिला-मैथिली में पागल छी
अहाँ नवसिखुआ चारि दिनक 
हमरा बुझबय में लागल छी?

हम पाग पहिर क मंच धेलहूँ 
गामे-गामे सबतरि छिछयेलहूँ 
हम जोरि-तोरि क संघ बनैलहूँ 
मिथिला-मैथिलीक दीप जरैलहूँ
आहाँ दु दिनक जे जागल छी
हमरा बुझबय में लागल छी?

हम चंदा कैलहूँ  चाटी कैलहूँ
ककर ककर नै ठेहुन  धेलहूँ 
ठाढ होई लेल जगह नै छल 
ताहि स मिथिला भवन बनैलहूँ 
अहाँ कहैत छी लोक बढाबू
बिना लाभ के संगी लाबू ?

काल्हि छला ओ सुतल कत्तय 
आइ कोना ओ औता एत्तय 
हम नै हटब बाट छोरि क 
भनहि दसेटा रहब जोरि क
हमरा नै चाही बेसी लोक 
दैत रहू बस चंदाक ठोप !

राजीव रंजन मिश्र 
२२/०६/२०१२

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