Saturday, November 17, 2012




रंज-ओ गम के अफसाने ये,चाक जिगर के कर जाते हैं!
हंसी कहाँ मिलती होठों पर जख्म दिनो दिन गहराते हैं !

बस एक हंसी के खातिर उनके जाने कितने कुर्बान हुए
बेदर्द ज़माने की ठोकर खाकर अब तो हँस कर भरमाते हैं !

कोई तड़पता है हंसने को और कोई तड़पाये आप हँसी को
जाने आप तड़प कर तड़पाने में लोग भला क्या पाते हैं !

बात चली जब जब गुलशन में खिलते कलियों के रंगत की तो
झूम उठा हर ब्याकुल मन जैसे सात सुरों के सरगम लहराते हैं !

पाक इरादे रखना "राजीव" और निगाहें बस मंजिल पर
औरों का गम बांटने वाले हर वक्त यहाँ मुस्काते हैं !


राजीव रंजन मिश्र



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