Wednesday, July 25, 2012

तुम मुझमे और मै तुझमे
ऐसा हो अपना संयोजन 
आये कैसी भी कठिन घडी 
विचलित ना हो  तन मन
आशाओं के डोर हमेशा 
जीवन से अपने बंधी रहे
हम बांटे सुख-दुःख अपना 
और सोच हमेशा सही रहे
सुख में हम इतराये ना
और दुःख में ना घबरायें
चले परस्पर यूँ मिलकर
की हिला सकें ना बाधाएं
जब मै थोड़ा सा दुखी रहूँ 
तुम मेरा दुःख दर्द मिटाओ 
और दिल में तुम्हारे वेदन हो
तो आगोश में मेरे आ जाओ
यूँ मिल-जुल कर जाएगी गुजर 
गर जीवन में आये भी पतझड़
और  भला क्या रखा है प्रिय 
यह जीवन है बस एक सफ़र

राजीव रंजन मिश्र
१७.०६.२०१२ 

मुस्की अहाँक मारुक पूनम के चान सन
ठोरक अहाँक लाली चैती गुलाब सन

कनखी अहाँ जे मारी होबय एहन चुभन
मारल अहाँ नैनक भटकई छी रण बन 

बैन अहाँक रुचिगर सुमधुर तान सन
सुनबा ला बोल व्याकुल छी सदिखन 

केश अहाँक कारी मेघ सन सघन 
छांह में एकरे कटैत रहय जीवन

यौवन अहाँक छलकैत शराब सन
मदमस्त भेल छी पिबि पिबि हम

संग पाबि अहाँक गमकल आँगन
चाह अछि यैह टा संग रही प्रीतम

राजीव रंजन मिश्र 
२३.०६.२०१२ 


मै चला जा रहा था कही,अपने ही राह पर !
जाने कब और कैसे वो, हमसफ़र बन गये !!
हम चलते रहे जिद पर बस यूँ ही रात-दिन!
राहे गुलशन में, वो एक गुलमोहर बन गये!!
जिंदगी कटती रही,लम्बी सफ़र की तरह!
राह में वो मगर मील के पत्थर बन गये!! 
हमने ख्वाहिश ना जाहिर किया था कभी!
बाखूब इल्म रहते भी वो बेखबर बन गये!!  
याद आये कभी जो लम्हात बीते दिनो के!
गमगीन अपने शाम-ओ-सहर बन गये!!

राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, July 8, 2012

हे युधिष्ठिर! क्या तुम्हारे न्याय का ऐसा ही सांचा था,
क्या तुम्हारे भावी भारत का ऐसा ही  ढांचा था!

हो हर तरफ अंधेरगर्दी और क्लांत हो वातावरण!
मच रहा हाहाकार हो,पर शांत हो अंतःकरण!
सच्चाई जानकर भी, सभी खामोश रहते हैं!
बड़ी मासूमियत से दबकर,जुल्मो को सहते है!
क्या तुम्हारे राज्य  का ऐसा ही खांचा था,
क्या तुम्हारे भावी भारत का ऐसा ही ढांचा था!

जब काफी थे बस एक ही,दुर्योधन व दू:शासन,
यहाँ तो जमघट है उनकी,दिखता नहि है कर्ण!
वहां तो भीष्म खैर अपनी प्रतिज्ञा से बंधे रहे,
यहाँ के भीष्म पितामहो से भला कोई क्या कहे!
क्या कभी कृष्ण ने यही गीता में वांचा था, 
क्या तुम्हारे भावी भारत का ऐसा ही ढांचा था!

एक द्रौपदी के चीड़-हरण ने रचाया था महाभारत,
यहाँ तो रोज़ लूटती नारियां,हो-हो कर आरत!
वहां तो कृष्ण ने विदुर के घर साग खाया था,
यहाँ तो पग-पग में छाया है जाति और वर्ण!
अंधेरगर्दी क्या तुम्हारे काल में ऐसे ही नाचा था,
क्या तुम्हारे भावी भारत का ऐसा ही  ढांचा था!

हे युधिष्ठिर! क्या तुम्हारे न्याय का ऐसा ही सांचा था,
क्या तुम्हारे भावी भारत का ऐसा ही  ढांचा था!

---राजीव रंजन मिश्र 
   १९.०४.२०१२ 

गर्भहिं सँ हुनका में,नेह लगौने रहय छथि!
हुनक आबय के आस में,नैन बिछौने रहय छथि!!
जिन्नगी के हरेक क्षण,हुनका पर लुटौने रहय छथि!
सब मधुर-स्वप्न अप्पन,हुनके पर सजौने रहय छथि!!
बस अही आस में,जे जखन ओ जवान  होयता!
त किछु करता हमरा लेल आ हमर ख़ास होयता!!
मुदा,जखन जवान भ,किछु करवाक बारी अवय छन्हि!
त बड्ड निर्मोही भ,मुंह फेरि,कनियाँक संग लई छथि!!
सब रुपे स्वार्थ में डुबि,अप्पन मज़बूरी जताबय छथि!
बाल-बच्चाक प्रति अप्पन जिम्मेदारी बताबय छथि !!
सब चीजक बाँट-बखड़ा क,अप्पन हिस्सा मांगैत रहय छथि!
पर त्रासदी त देखू समाजक,'बेटे' टा तैय्यो अप्पन कहाय छथि!!
आ दोसर दिश,जहिया सँ ओ मायक गर्भ में ऐलथि!
जानति बा अनजानति,बस आनहि टा कहैलथि!!
चीज़ त छोडु आशिर्वादहूँ टा,बँटति-बँटाईत सब में!
बाँचले-खूचल टा हरदम,अपना हिस्सा में पैलथि !!
सब तरहें संयमित जीवन के जीवति,जखन ओ जवान भैलथि!
त बड्ड शान-शौकत सँ,कोनो अन्चिन्हारक सुपुर्द कैल गैलथि!!
अहि तरहे,सब रुपे जीवन के जीवति, जखन भी मौका पड़य छन्हि!
त एक नइ दु-दु गोट माय-बापक प्रति,अप्पन फ़र्ज़ निभाबय छथि !!
मुदा,हाय रे ई दुनिया आ समाज!
'बेटी' तैय्यो आने टा कहाबय छथि!!

--राजीव रंजन मिश्र 

किशन कन्हैया,बंशी बजैया!
आबु ने  फेर एक बेर यौ !!
गाम-गाम ब्रज भ,सुन्न पड़ल अछि!
धाबु ने फेर एक बेर यौ!!

यमुने टा नहि,सौंसे कारी भेल अछि !
नथाबु ने कालिया नाग,फेर एक बेर यौ!!
कंस घुमि-घुमि,नाश करैत अछि !
हराबु ने फेर एक बेर यौ!!
किशन कन्हैया,बंशी बजैया!
आबु ने  फेर एक बेर यौ !!


राधा घर-घर,बिलखि रहल छथि!
नचाबु ने फेर एक बेर यौ!!
ललिता-विशाखा कानि रहल छथि!
हँसाबु ने फेर एक बेर यौ!!
किशन कन्हैया,बंशी बजैया!
आबु ने  फेर एक बेर यौ !!


पाण्डव रन-बन भटकि रहल छथि!
देखाबु ने पथ फेर एक बेर यौ!!
कौड़व वंश बढा रहल अछि !
मिटाबु ने फेर एक बेर यौ!!
किशन कन्हैया,बंशी बजैया!
आबु ने  फेर एक बेर यौ !!


दुर्योधन घर-घर जनमि रहल अछि!
जगाबु ने अर्जुन के फेर एक बेर यौ!!
दु:शासन लाज लुटि रहल अछि!
बढाबु ने चीड़ फेर एक बेर यौ!!
किशन कन्हैया,बंशी बजैया!
आबु ने  फेर एक बेर यौ !!


सब तरहें जीवन कठिन भेल अछि!
सुनाबु ने चैनक धुन फेर एक बेर यौ!!
किशन कन्हैया,बंशी बजैया!
आबु ने  फेर एक बेर यौ !!

राजीव रंजन मिश्र
२३.०३.२०१२