मोन के मोन सँ जे बुझयति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
तन के भाव सँ जे बुझयति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
धन के आशीर्वाद सँ जे बुझयति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
प्राण के प्राण जे बुझयति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
प्रकृति सँ जे भेंट करावति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
जग-समाज सँ जे मेट करावति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
प्रभु-प्रसाद सँ जे सहेट करावति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
आर त आर,बाप सँ जे भेंट करावति अछि ,ओ माँ होयत अछि!
मोन,मोन अछि,कियाक त माँ होयत अछि!
तन,तन अछि,कियाक त माँ होयत अछि!
धन,प्राण अछि,कियाक त माँ होयत अछि!
बंधू! जीवन,जीवन अछि,कियाक त माँ होयत अछि!
कहियो सोचलहूँ जे हम बुझय के,जे माँ की होयत अछि!
बुझि सकलंहू नै अथक चाहि,जे माँ की होयत अछि!
कहियो बैसलंहू जे हम सोचे ला,जे माँ की होयत अछि!
हारि-थाकि मनलहूँ याह टा मोन सँ,जे माँ त बस माँ होयत अछि!
---राजीव रंजन मिश्र
१३.०५.२०१२
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