Tuesday, March 6, 2012

देखि क दुनियाँक रंग,
हम दंग  भ गेलहुं !
आब कि कहूँ अहाँ के,
ककरा संग हम छलहूँ!!
नहि छल कनिकबो ई गुमान,
कि होयत ई एनाह!
आब त ई झिक्झोड़ी सँ,
हम तंग भ  गेलहुं !!
नहि मोन आब लागैत अछि,
दुनियक भीड़ में!
संगी सँ बिछुरि क हम,
बदरंग भ  गेलहुं !!
पाबय ला साथ हुनकर,
कि-कि नै हम कैलहूँ!
सब किछु गवाय क हम,
नंग- धडंग भ गेलहुं !!
ककर छल ई मजाल जे,
करितैय  ई हमर हाल!
अप्पन के मारल हम सिमटि क ,
अन्तरंग भ गेलहुं !!
आबाहु छी बाँचल,
बस जीवट पर चलि रहल छी !
जौं साथ हुनक भेटल,
त मस्त मलंग भ गेलहुं !!

 ---राजीव रंजन मिश्र
०४.०३.२०१२

No comments:

Post a Comment