Wednesday, January 18, 2012

बेवफा तेरी याद आती है,
जिंदगी के उदास रातों में!
बेड़ियाँ सी पर गयी है,
अब तो अपने ही हाथों में!
साया भी अपना मुझसे,
दामन छुड़ा रहा  है!
दीवाना हूँ इस कदर कि,
पागल बना रहा है!
हँसता किसी को देखूं,
सोंचू रुला रहा है!
नादाँ न जाने क्यूँ कर,
क़यामत बुला रहा है!
खुशियों से जैसे दिल को,
नफरत सी हो गयी है !
हर वक्त मौन रहना,
फितरत सी हो गयी है!
चाहत यही है मेरी,
कि,तेरी याद यूँ ही आये!
तुझको कभी न भूलूं,
भले जान मेरी जाये!


१९/०१/१९९५ 




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