Monday, January 23, 2012

रात के सन्नाटे को,
चीड़ता हुआ एक पथिक!
अपने ही धुन में मगन,
मिलने को आतुर अपने प्रियवरों से!
चला जा रहा था बेधड़क ,
दिल में कई सपने संजोते हुए!
इस बात से बेखबड़,
कि सपने संजोये नहीं जाते!
वो तो पूर्वनियोजित होते हैं,
किसी सर्वशक्तिमान संचालक के द्वारा!
फिर भी यह छुद्र मनुज कहाँ मानता,
बेहिचक,बेफिक्र हो मनमानी करता!
बस एक पल की बात थी,
टकरा गया सामने से आती हुई क्रूर सच्चाई से!
बिखर गये सपने सारे,
उसके अपने और समग्र परिवार के!
ख़ामोशी को झंझोड़ती  हुयी ,
उसकी दर्दनाक चीख भी!
दहला ना सकी जरा भी,
कुदरत के उस घिनौने  मजाक को!

------अपने प्रिय बंधु स्व. विनोद(गुड्डू) तिवारी के पथ-दुर्घटना में हुए निधन पर,शोकाकुल ह्रदय से निकले दो शब्द!!
राजीव रंजन मिश्र 
१३.०१.२०१२

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